गुरुवार, 17 नवंबर 2016

प्रेरक प्रसंग

एक प्रेरक प्रसंग जो मुझे आदरणीय Prakash Nayakji ने भेजा,मुझे अच्छा लगा इसलिए आप लोगों के साथ शेयर कर रहा हूँ।
धार राजा का एक उद्यान आम के पके फलों की खुश्बू से महक रहा था। मार्ग पर जाते हुये वनवासी (भील) की दृष्टि में वह आम पके फल बरवस भा गये। वनवासी ने कुछ आम नीचे गिरा लिये और इत्मीनान से वहीं बैठकर रसास्वादन लेने लगा। वह अनभिज्ञ था, निश्चिंत भी पर थोड़ी ही देर में राजा के नियुक्त उद्यान रक्षकों ने उसे रँगे हाथों पकड़ लिया।
उद्यान रक्षक, हाथ बाँधकर वनवासी को राजा के समीप ले गये। राजा ने बिना अनुमति के उद्यान में प्रवेश पर कड़ी सजा मुकर्रर कर रखी थी, पर इस वनवासी का अपराध कुछ अधिक ही था। रक्षक आश्वस्त थे, वनवासी को कठोर दण्ड और उन्हें इनाम मिलेगा।
राजा ने रक्षकों को तो इनाम दिया पर वनवासी को क्षमा माँगकर छोड़ दिया। ऐसे न्याय को देख सुनकर खचाखच भरे दरबार में प्रश्नों से भरा सन्नाटा छा गया। हर आँख कठोर सजा के लिये प्रसिद्ध राजा से एक ही प्रश्न पूछ रही थी कि अब बगीचे से राहगीरों को फल तोड़ लेने की आजादी हो गयी है क्या?
सिंहासन पर विराजमान राजा ने दरबारियों से मुखातिब होते हुये कहा कि प्रिय स्वजनो! आज पहली बार किसी राह चलते वनवासी ने हमारे बगीचे के हमारी इजाजत के बिना फल तोड़े हैं। आप सभी को मैं यह बताना अपना फर्ज़ समझता हूँ कि मैंने उसे सज़ा क्यों नहीं दी। माफ़ी क्यों माँगी?
दरबारियों के कान राजा के उत्तर को सुनने के लिये टक टक करने लगे। गंभीर और आत्मविश्वास से भरी आवाज सिंहासन की सीमा पारकर पूरे दरबार में साँय साँय करती हुई गुंजायमान होने लगी। एक सन्नाटा, क्या हुआ चोरी के नियमों में ऐसी शिथिलता उन्होंने कभी न देखी थी।
वनवासी वनों के स्वामी हैं,हमने उनके वन पर अपना अधिकार कर लिया है। वनवासी इस बात से अनभिज्ञ था। उसे यही पता था कि पके फल वह तोड़ कर खा सकता है। अभी तक उसने प्रकृति पर एकाधिकार न किया और किसी को ऐसा करते देखा। वह चोरी नहीं कर रहा था, अपने जंगल के फल तोड़ कर आराम से खाने लगा, तभी सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया।
सिपाहियों को उनके कर्तव्य पालन का इनाम दिया गया और वनवासी जो इस वन का नैसर्गिक मालिक है उससे हमने क्षमा माँगी। यदि मैं ऐसा नहीं करता तो अन्याय होता और वनवासी सोचता रहता कि आखिर उसे दण्ड किस बात का दिया। अपनी जरुरत से अधिक का संग्रह न करनेवाले प्रकृति के असली संरक्षक यही हैं, हम तो उसपर अधिकार करनेवाले हैं।
राजा ने आगे कहा कि जिस दिन हम वनवासियों पर अपने नियम चलाना शुरू कर देंगे उस दिन से शान्ति खतम हो जायेगी अत: मेरे राज्य में वनवासियों पर मेरे बनाये नियम लागू नहीं होंगे। नगरवासियों पर ही मेरे कानून लागू रहेंगे। सन 1827 ईस्वी तक वनवासी राजाओं के नियमों मुक्त एवं स्वतंत्र सत्ता के स्वामी की तरह रहे।
अंग्रेजों ने वनवासियों की स्वतन्त्रता को छीन लिया तभी से वनवासियों को बदनाम करने का दौर शुरू हुआ। उनको बदनाम करने का यह दौर हॅालीवुड की फिल्मों से बॅालीवुड की फिल्मों से होते हुये पूरे भारत में फैल गया।
हमारे ही पूर्वजों को हमने ही न जाने क्या क्या कहा, उन पवित्र आत्माओं को समझे बिना उन पर कैसी कैसी विपदा आई,सुनकर रोंगटे खड़े हो जायेंगे। आवश्यक है भारतीय अरण्य संस्कृति के जन्मदाताओं को जानने और समझने की।